गोंडा -एक तरफ महगाई की मार झेल रहे भारतियों की परेसानिया कम होने का
नाम नहीं ले रही है वही देश में केंद्र की सत्ता पर आसीन बड़े बड़े
राजनैतिक उद्योगपति 2G से लेकर कोल ब्लाक जेसे बड़े घोटाले करके अपने
बचाव में ब्यस्त है. देश में चारो तरफ हाहाकार मचा है हर तरफ एक ही शोर
है, हाय महगाई हाय महगाई .अब जब देश में बड़े उद्योगपति एक बाद एक घोटालों
से ज्यादा मुनाफा कमाने को लालयित है तो आखिर जिला मुख्यालय में स्थापित
लघु और कुटीर उद्योग चला रहे अधिकारीयों का हक़ तो बनता ही है.मामला है
गोंडा शिक्षा विभाग में मान्यता को लेकर मची हलचल का जिसने जिला प्रशासन से
लेकर राजधानी तक सबका ध्यान आकर्षित किया.मान्यता के लिए आये कुछ लोगों ने
बीएसए ऑफिस में मारपीट तक कर डाली. एक बाबू को गंभीर चोटें भी आई, जिसका
जिला अस्पताल में उपचार चल रहा है. बड़े ही खूबसूरत ढंग से मामले का
रजनीतिकरण किया जा रहा है, विभागीय संगठन काम काज का बहिस्कार भी कर रहा
है और गिरफ़्तारी कि मांग भी. कोई भी ब्यक्ति मामले का कारण जानने में कोई
रूचि नहीं ले रहा है. फिर भी एक सवाल तो बनता ही है कि आखिर ऑफिस में ऐसा
क्यों हुआ . खैर छोडिये दूसरे पहलू पर पर ध्यान दे कि आखिर विभाग के पास
मान्यता देने के क्या मानक है, क्या जिले में मान्यता प्राप्त विद्यालाय
विभाग के मानकों पर खरे है. दुर्भाग्यवश कही इसका जवाब नहीं मिल जाय तो
जाहिर सी बात है मान्यता के लिए लोगों कि भीड़ तो लगेगी ही. और फिर वो भीड़
बहस मारपीट, और जाने क्या क्या करे ? क्योकि विद्यालाय चलाने से अच्छा और
कोई ब्यवसाय है ही नहीं, क्योंकि औने- पौने ले - दे कर कही मान्यता मिल
गयी तो एक बार विद्यालय की शाख बनाने के बाद मनमाने ढंग से फीस बढाकर
ब्यवसाय का मुनाफा बढ़ने का अधिकार तो बन ही जाता है साथ ही साथ यदि शिक्षा
विभाग कान में तेल डाल का ए सी कमरों में आँख बंद किये आराम फरमा रहा हो
तब तो शिक्षा माफियाओं के लिए एक ही कहावत उपयुक्त बनती है
"खुद ही वो कातिल है और खुद ही मुंसिफ"
अब
सवाल यह उठता है की बिना मानकों पर खरे शिक्षा माफियाओं के विद्यालयों में बच्चों की
भीड़ कैसे है और और जनता अधिक पैसा दे कर क्या सहज महसूस कर रही है ? जवाब
एक ही है है की सरकारी विद्यालयों से लोगों का मोहभंग है भारत सरकार ने
भारत के भविष्य निर्माण के लिए जिन अध्यापकों को नियुक्त किया उन्होंने
लोगों का विश्वास खो दिया है एक जगह तो प्रधान अध्यापक ने अपनी जगह पर 2000
में एक अध्यापक नियुक्त कर डाला और खुद घर पर मौज फर्मा रहे है ,जब घर पर
मन ऊब जाय तो कभी कभी चौराहे की शैर करके राजनैतिक विद्वता भी हासिल करते
है कुल मिला कर शिक्षा विभाग अपने पूरे मौज में है और इस मौज का पैसा भी
हमारी आपकी जेब का है .और हम इस उम्मीद में अपना पेट काट कर शिक्षा
माफियाओं को ज्यादा पैसा दे रही है क्योकि सवाल हमारे बच्चों के भविष्य का
ही नहीं भारत वर्ष के भविष्य का है. सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत गोंडा
जनपद में वित्तीय वर्ष 2011 -12 में
7797.82 लाख रुपये आये जिसमे से 7484.60 रुपये खर्च भी कर डाले गए .
लेकिन लगातार सरकारी विद्यालयों से बच्चों की भीड़ नदारद होती रही. अब आखिर
ये रुपये कहा गए इसका पता सी बी आई लगाये तो भी कहा नहीं नहीं जा सकता
वो किसी परिणाम तक पहुँच पायेगी. क्योकि इस लोकतंत्र में उसकी भी तबियत
ख़राब ही नज़र आती है उसने हथियार डालने की आदत जो सीख ली है. चारो तरफ जब
जहाँ महगाई भ्रस्टाचार और तरह तरह का हो हल्ला मचा है वह पर यह सवाल भी तो
बनता ही है की आखिर देश के भविष्य के साथ ऐसा मजाक क्यों हो रहा है ,
क्या शिक्षा में भ्रस्टाचार हमें पतन की और नहीं ले जा रहा है , क्या हम
आने वाली पीढ़ी को भ्रस्टाचार विरासत में नहीं दे रहे है , क्या हम अपने
घरों मूकदर्शक बनकर भारत माता के लालों को गलत दिशा में जाते नहीं देख रहे
है रहे है . आखिर देश किस दिशा में जा रहा है. क्या भारत का वर्तमान ही
उसका भविष्य है, यदि हाँ तो देश की आन बान और शान पर अपना सर कटाने वाले उन
शहीदों को याद करिए क्या इसी दिन के लिए उन्होंने अपने जन की बाज़ी लगा
दी. और क्या अब भारत में देशभक्तों की कमी पड़ गयी है शायद हाँ क्योकि आज
हमारे बच्चे देशभक्ति का मतलब जान ही नहीं पा रहे है और इसकी पूरी
जिम्मेदारी शिक्षा शिक्षक और सरकार की है .