Tuesday 25 December 2012

ऐ दिवानी ....... जिन्दगी


                                                          ऐ दिवानी ....... जिन्दगी .,
                                                          मेरा भी कुछ ख्याल कर
                                                          खामोश गुजरी जा रही
                                                        मुझमे भी कुछ बवाल कर
                                         
                                              मुझमे भी मेरे पुरखों का, बहता हुआ यह रक्त है
                                            मुझको भी बस एक दांव दे, मेरा भी कुछ तो वक़्त है


                                               हम मौज करने को नहीं आये है इस भू-लोक में
                                              कुछ काम करके ही यहाँ जाना है फिर परलोक में

                                    
                                                    तू जानती है सालो से हमसे जमाना दंग है
                                                   हम राजपूतो की कहानी बस यहाँ एक जंग है

                                                  मुझको भी ले आगोश में मुझको भी लड़नी जंग है
                                                   अब जंग लड़ने के सिवा  यह जिन्दगी तो तंग है

Sunday 23 December 2012

जगत गुरु इस देश की लुटिया डूबत जाय


गोंडा -एक तरफ  महगाई की मार झेल रहे  भारतियों  की परेसानिया कम होने का  नाम नहीं ले रही है वही देश में केंद्र की सत्ता पर आसीन बड़े बड़े राजनैतिक उद्योगपति   2G से लेकर कोल ब्लाक  जेसे बड़े घोटाले करके अपने बचाव में ब्यस्त है. देश में चारो तरफ हाहाकार मचा है हर तरफ  एक ही शोर है, हाय महगाई हाय महगाई .अब जब देश में बड़े उद्योगपति एक बाद एक घोटालों से ज्यादा मुनाफा कमाने को लालयित है तो आखिर जिला मुख्यालय में स्थापित लघु और कुटीर उद्योग चला रहे अधिकारीयों का हक़ तो बनता ही है.मामला है गोंडा शिक्षा विभाग में मान्यता को लेकर मची हलचल का जिसने जिला प्रशासन से लेकर राजधानी तक सबका ध्यान आकर्षित किया.मान्यता के लिए आये कुछ लोगों ने बीएसए ऑफिस में मारपीट तक कर डाली. एक बाबू को गंभीर चोटें भी आई, जिसका जिला  अस्पताल में उपचार चल रहा है. बड़े ही खूबसूरत ढंग से मामले का रजनीतिकरण किया जा रहा है, विभागीय संगठन काम काज का बहिस्कार भी  कर रहा है और गिरफ़्तारी कि मांग भी. कोई भी ब्यक्ति मामले का कारण जानने में कोई रूचि नहीं ले रहा है. फिर भी एक सवाल तो बनता ही है कि आखिर ऑफिस में ऐसा क्यों हुआ . खैर छोडिये दूसरे पहलू पर पर ध्यान दे कि आखिर विभाग के पास मान्यता देने के क्या मानक है, क्या जिले में मान्यता प्राप्त विद्यालाय विभाग के मानकों पर खरे है. दुर्भाग्यवश कही इसका जवाब नहीं मिल जाय तो जाहिर सी बात है  मान्यता के लिए लोगों कि भीड़ तो लगेगी ही. और फिर वो भीड़ बहस मारपीट, और जाने क्या क्या करे ? क्योकि विद्यालाय चलाने से अच्छा और कोई ब्यवसाय है ही नहीं, क्योंकि  औने- पौने ले - दे कर कही  मान्यता मिल गयी तो एक बार   विद्यालय की शाख बनाने के बाद  मनमाने ढंग से फीस बढाकर ब्यवसाय का मुनाफा बढ़ने का अधिकार तो बन ही जाता है साथ ही साथ यदि शिक्षा विभाग कान में तेल डाल का ए सी कमरों में आँख बंद किये  आराम फरमा रहा हो तब तो शिक्षा माफियाओं के लिए एक ही कहावत उपयुक्त बनती है
                              
                                      "खुद ही वो कातिल है और खुद ही मुंसिफ"
                                            
अब सवाल यह उठता है की बिना मानकों पर खरे शिक्षा माफियाओं के विद्यालयों में बच्चों की  भीड़ कैसे है और और जनता अधिक पैसा दे कर क्या सहज महसूस कर रही है ? जवाब एक ही है है की सरकारी विद्यालयों से लोगों का मोहभंग है  भारत सरकार ने भारत के भविष्य  निर्माण के लिए जिन अध्यापकों को नियुक्त किया उन्होंने लोगों का विश्वास खो दिया है एक जगह तो प्रधान अध्यापक ने अपनी जगह पर 2000 में एक अध्यापक नियुक्त कर डाला और खुद घर पर मौज फर्मा रहे है ,जब घर पर मन ऊब जाय तो   कभी कभी चौराहे की शैर करके राजनैतिक विद्वता भी हासिल करते है कुल मिला कर  शिक्षा विभाग अपने पूरे मौज में है और इस मौज का पैसा भी हमारी आपकी जेब का है .और  हम  इस उम्मीद में अपना पेट काट कर  शिक्षा माफियाओं को ज्यादा पैसा दे रही है क्योकि सवाल हमारे बच्चों के भविष्य का ही नहीं भारत वर्ष के भविष्य का है. सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत गोंडा जनपद में वित्तीय वर्ष 2011 -12  में 7797.82 लाख रुपये आये जिसमे  से 7484.60 रुपये खर्च भी कर डाले गए . लेकिन लगातार सरकारी विद्यालयों से बच्चों की भीड़ नदारद होती रही. अब आखिर ये रुपये कहा गए इसका पता  सी बी आई लगाये तो  भी कहा नहीं नहीं जा सकता वो किसी परिणाम तक पहुँच पायेगी. क्योकि इस लोकतंत्र में उसकी भी तबियत ख़राब ही नज़र आती है उसने हथियार डालने की आदत जो सीख ली है. चारो तरफ जब जहाँ महगाई भ्रस्टाचार और तरह तरह का हो हल्ला मचा है वह पर  यह सवाल भी तो बनता ही है  की आखिर देश के भविष्य के साथ ऐसा मजाक क्यों हो रहा है , क्या शिक्षा में भ्रस्टाचार हमें पतन की और नहीं ले जा रहा है , क्या हम आने वाली पीढ़ी को भ्रस्टाचार विरासत में नहीं दे रहे है , क्या हम अपने घरों मूकदर्शक बनकर भारत माता के लालों को  गलत दिशा में जाते नहीं देख रहे है रहे है . आखिर देश किस दिशा में जा रहा है. क्या भारत का वर्तमान ही उसका भविष्य है, यदि हाँ तो देश की आन बान और शान पर अपना सर कटाने वाले उन शहीदों को याद करिए क्या इसी दिन के लिए उन्होंने अपने जन की बाज़ी लगा दी. और क्या अब भारत में देशभक्तों की कमी पड़ गयी है शायद हाँ क्योकि आज हमारे बच्चे देशभक्ति का मतलब जान ही नहीं पा रहे  है और इसकी पूरी जिम्मेदारी शिक्षा शिक्षक और सरकार की है .     

Monday 12 November 2012

गोनार्धचरित -लेखा जोखा गोंडा का

 हमारी सरजमीं पर एक कहावत है भैया पूत के पांव पालने  में ही दिखने लगते है,दरअसल यह कहावत पूत को पैदाइसी  प्रतिभावान बिलकुल नहीं कहती है बल्कि इस कहावत का अभिप्राय किसी भी समुदाय  के कल और आज  के मूल्यांकन से  है. कोई भी ब्यक्ति अथवा समाज  यदि अपने अतीत को अपने पुराने कपडे  की तरह उतार कर फ़ेंक न दे तो उसका आज उसके क़ल पर काफी कुछ निर्भर करता है,क्योकि  किसी भी ब्यक्ति का इतिहास उस ब्यक्ति के ब्यक्तित्व निर्माण में काफी अहम् है,संभवतः यही पूत के पांव और पालने की  असलियत  है   तो फिर आइये आज हम गोंडा जैसे क्षेत्र को  इस कहावत की शुद्धता पर मापते है
रामायण काल में भगवान राम की गायों के इस क्षेत्र में चरने आने के कारण इस क्षेत्र को गोनार्ध के नाम से जाना जाता था. गोंडा आज से लेकर आदि तक इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी रखता है लेकिन शुरुआत आज से ही करे तो पाएंगे की विकास की दृष्टी  से यह क्षेत्र देश के अति पिछड़े जिलों में से एक भले हो किन्तु देश की सियासत में भागीदार बड़े बड़े राजनीतिक लक्ष्मीपतियों का बड़ा जमावड़ा यहाँ आज़ादी के बाद से ही निरंतर बना हुआ है . प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने पहली और दूसरी लोकसभा में गोंडा का प्रतिनिधित्व किया .प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गोंडा बलरामपुर सीट  से अपनी राजनैतिक शुरुआत  की. तीसरी लोकसभा में आखिरकार चुनावी गड़बड़ियों की शुरूआती नींव गोंडा में रखी गयीं. इसे हम आज़ाद भारत में भ्रस्टाचार की शुरुआत कह सकते है . उत्तर प्रदेश सरकार में केबिनेट मंत्री कुंवर आनंद सिंह पिछले कई दसक से गोंडा की राजनीती को समर्पित है . गोंडा सदर  विधान सभा से विधायक विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह राज्य की  सपा सरकार में राजस्व मंत्री है.  भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बाहुबली सांसद ब्रजभूषन  शरण सिंह एक दशक से भी अधिक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कर चुके है . विकास पुरुष कांग्रेस सांसद माननीय बेनी प्रसाद वर्मा इस समय गोंडा के सांसद है और केंद्रीय इस्पात मंत्री है .

राजनैतिक आंकड़ों के धनी इस क्षेत्र में यदि विकास की गति को देखा जाय तो हमें पता चलता है की आज़ादी के बाद से इतने बड़े बड़े राजनेता जिस विकास की गाड़ी पर बारी बारी से सवार हो रहे है वह गाड़ी तो अंग्रेजों ने ही पंचर कर दी थी .और आज़ादी के बाद से ही इस क्षेत्र में माननीय  यह बता कर ही राजनीति कर रहे है, कि बस बहुत हो चुका इस बार हमें मौका दीजिये हम गाड़ी के सारे पहिये नए कर देंगे. प्रत्येक पांच सालों के अन्तराल पर  लाउडस्पीकरों से निकले हुए वादों से आख़िरकार यहाँ के लोगों का इतना  मोहभंग है कि उन्हें सच पर भी यकीन नहीं  है. आज गोंडा देश के अति पिछड़े क्षेत्रों में शुमार किया जाता है शिक्षा स्वास्थ्य सड़क और अन्य मूलभूत सुविधाओं कि हालत खस्ता है . क्राइम रेट के मामले में भले ही यह जिला प्रदेश के शीर्षतम जिलों में से एक बना हुआ है . बाढ  और सूखा से निपटने के लिए तो यहाँ के लोग दुनिया में सबसे आत्मनिर्भर है क्योकि उनका आत्मनिर्भर होना उनके लिए मजबूरी भी है और आत्मकर्तब्य भी .


राजधानी से लेकर गोंडा को जोड़ने वाले  राजमार्ग का तो यह आलम है कि सालों पहले जर्जर हो चुका बालपुर का  पुल आजतक नहीं बन पाया है जिसके लिए गोंडा के लोगों को लखनऊ तक जाने के लिए ३० किलोमीटर अतिरिक्त चलना पड़ता है , खैर कुछ भी हो  लोग अपने काम के साथ थोडा सैर सपाटा भी कर लेते है ,या हो सकता है कि सरकार का मंसूबा  टूटे हुए पुल कि मदद  से पर्यटन को बढ़ावा देना  हो .क्योकि पुल के बन जाने से लोग सीधे ही राजधानी पहुच जायेंगे . बरसात में  घाघरा की  तूफानी लहरें जब राजमार्ग को आँख दिखाती हुई जब उसके सीने तक चढ़ जाती है तो सरकार को इस बात का अंदाजा हो ही जाता है कि इस साल बरसात अच्छी हुई है .फसल अच्छी हुयी   तो किसानों पर थोडा बोझ  और डाला जा सकता है.करीब १५० साल पहले लार्ड कैनिंग ने अपनी बायोग्राफी में अवध के मध्यवर्ती क्षेत्रों को दुनिया का सबसे समृद्धशाली क्षेत्र कहा था क्योकि यहाँ कि जमीन खेती के लिए सबसे उपजाऊ थी .आज इसी माटी का किसान कर्ज के बोझ से डूबा है और आख़िरकार वह अपनी माटी से मोहभंग करके जीविका के अन्य साधनों के लिए  महानगरों कि तरफ देख रहा है.
एतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत कि दृष्टी से गोनार्धभूमि ने रामायण काल से लेकर ब्रिटिश काल तक अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई है . आचार्य पतंजलि ,पाराशर मुनि ,गोश्वामी तुलसीदास  जैसे महापुरुषों कि श्रंखला इसी माटी से जुडी है.भगवान वाराह के अवतार स्वरुप वाराह मंदिर कि प्राचीनता इसे और अधिक गौरवशाली बनाती है. रघुवंशी महाराजा दिलीप द्वारा स्थापित काली भवानी मंदिर , महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित पृथ्वीनाथ मंदिर ,पंचारन्य वन ,विख्यात शक्ति पीठ देवीपाटन , दुखहरण नाथ मंदिर , हनुमान गढ़ी, खैरा भवानी मंदिर  सुरसा मंदिर गोनार्ध्भूमि को और अधिक गरिमामयी बनाते है.मुगलकाल में गोंडा ने भयावह प्राकृतिक आपदा झेली जब खोरहसा रियासत के आसपास कि जमीन का एक बड़ा भू-भाग राजमहल के साथ जमीन में धंस गया जिसे हम आज पथरी झील के नाम से जानते है.  इल्तुत्मिस का बेटा मालिक एनुद्दीन गोंडा का सूबेदार हुआ करता था.अकबर के समकालिक यहाँ बड़ा शोर शराबा हुआ ,शेर शाह सूरी   स्वयं ही विसेनों का राजतिलक करने गोंडा आया और फिरोज शाह तुगलक अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर ६ महीनों तक यहाँ जमा रहा . अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वाधीनता संग्राम में गोंडा के महाराजा देवी बक्श  सिंह के नेतृत्व में इस भूमि ने संपूर्ण भारत  कि अंतिम साधना भूमि होने का गौरव प्राप्त किया.दिसंबर १८५९ तक राजा के २०००० लड़ाके अंग्रेजों के खिलाफ अपने जान कि बाज़ी लगाते रहे.

काकोरी कांड के मुख्य अभियुक्त राजेंद्र नाथ लाहिड़ी गोंडा जेल में हँसते हँसते फाँसी के फंदे  पर झूल गये.मनकापुर के लल्लन साहब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की  पार्टी फारवर्ड ब्लाक  के अवध के अध्यक्ष थे.
सैकड़ों साल पहले गोंडा के महाराजा राम सिंह ने गोंडा नगर को मथुरा और वृन्दावन के प्रतिविम्ब  स्वरुप बसाया और नगर के मध्य  कई तालाब खुदवाए वो सभी आज गोंडा की  सारी गंदगी अपने दामन में समेटे हुए  हैं. आसमान छुते राजा गोंडा के जगमोहन  महल के हौसले अब पस्त होने को हैं जबकि गोंडा के ३४ लोग अपनी विरासत को तितर वितर होते  शायद इसलिए  देख रहे है क्योकि वो तो रोटी कपडा मकान में उलझे हैं .सैकड़ों साल पहले जिस गोंडा नगर को लखनऊ नवाब के विशेष अतिथियों कि मेहमान नवाजी का मौका मिलता था उसी गोंडा नगर को अमृतलाल नगर ने दरिद्र कहा ,२००१ में बी.बी.सी. रेडिओ की टीम गोंडा आई और उस टीम ने टिप्पड़ी की ''दुनिया बदली गोंडा नहीं बदला '' तो २१ सदी के प्रसिद्द शायर अदम गोंडवी ने अपना शायराना अंदाज कुछ इस तरह दिखाया.


                                                 "महज सड़कों में गड्ढे है न बिजली है न पानी है
                                                 हमारे शहर गोंडा की फिजा कितनी सुहानी है "  

जनसँख्या की दृष्टी से गोंडा पनामा जैसे देशों से भी बड़ा है . भारत के ६४० जिलों में से ९५ वाँस्थान रखता है .विकास की दृष्टी से गोंडा देश के १०० अति पिछड़े जिलों में से एक है .साक्षरता दर समूचे देश की तुलना में भी ५% कम है, मानव विकास सूचकांक ,शिशु मृत्यु दर तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भी यह जिला फिसड्डी ही है
अब सवाल यह उठता है की  इतने गौरवशाली इतिहास के बावजूद आज गोंडा  के लोग  देश में पिछड़ेपन का पर्याय क्यों बने हुए है क्या  वो अपना अतीत भूल चुके है या वो इतिहास की कीमत चुका रहे है.यदि हाँ तो निश्चित ही यह  उनके पुरखों का अपमान है.साथ ही साथ गोंडा के ३४ लाख लोगों के लिए एक चुनौती भी है  ,क़ि वो अपने पुरखों के  गौरवशाली इतिहास को गरीबी और पिछड़ेपन से जोड़कर उनके  मरणोपरांत उन्हें शर्मिंदा न करें.

Sunday 11 November 2012

प्रधानमंत्री को भारत माता का एक पत्र

            

                                        प्रिय मनमोहन , आज भरत वंशियों  की दुर्दशा देखकर मेरा मात्र ह्रदय  कराह  उठा, मेरे 121 करोड़ बच्चों में कुछ मुट्ठी भर लोगो को छोड़कर बाकि लोग अपने ही घर में रोटी  कपडा मकान के लिए संघर्ष कर रहे है, आज मेरे आधे से ज्यादा  बच्चे 26 रुपये कमाकर भी बड़ा आदमी नहीं बन पा रहे है तो मेरे ही कुछ जिम्मेदार बच्चे अपने मेहमानों को आठ आठ हज़ार की थाली परोस रहे है , 26 रुपये प्रति दिन कमाने वाले बच्चों की सूनी थाली देख कर एक माँ का ह्रदय आज खून के आंसू रोया लेकिन इतना ही नहीं जब मैंने अपने उन भूखे  बच्चों की तरफ ध्यान किया जो 26 रुपये भी नहीं कमा पा रहे है तो तुम ही सोचो मुझ पर क्या बीती होगी ? तुम्हारे ही कुछ सहयोगियों ने एक बाद एक मेरे सभी गहने बेच डाले पर मैंने कभी तुमसे कोई शिकायत की ? किन्तु अब मुझमे और धैर्य नहीं बचा है क्योकि मेरे आभूषण बेचने वाले मेरे ही कुछ बिगडैल बच्चे अब मेरे गरीब बच्चों पर महगाई के बम दाग रहे है। प्रिय मनमोहन इन बिगडैल लोगों की थोडा तुम ही समझाते क्योकि उनको समझाना तो मेरे बस में रहा नहीं , वो तुम्हारी सुनते है , तुम्हारी बात जरुर मानेंगे , इसे तुम अपनी भारत माता की विनती ही  समझना क्योकि मै  अपने गरीब बच्चों को भूखा नहीं देख सकती।

अरे हाँ एक बात पूछना तो भूल ही गई , यह मै क्या सुन रही हूँ ,कुछ लोग तुम पर  भी मेरे कुछ गहने  चुराने के आरोप लगा  रहे है ,अब तुम ही बताओ अगर मै उन लोगों की बात  मान लू तो आखिर मै किस ओर को जाउंगी। नहीं नहीं मै  यह नहीं मान  सकती की मेरा सबसे जिम्मेदार बेटा बिगड़ गया है क्योकि वह तो मेरे प्राण तुल्य है ,और मै यह   तो मानती ही हूँ की मेरे बच्चे कितने भी बिगड़ जाय कम से कम अपनी भारत माता के प्राणों से कोई समझौता नहीं करेंगे. मेरे बच्चे अपने पुरखों के शौर्य को भूले थोड़ी है जिन्होंने मेरी अस्मिता की रक्षा के लिए अपने सर कटवा दिए आखिर इनकी रगों में लहू बन कर दौड़ रहा खून मेरा ही तो है ,इतना दूषित नहीं हो सकता।

बस एक मन की ब्यथा कहू प्रिय मनमोहन ; कभी कभी मुझे मेरे वो बच्चे मिल जाते है(शहीदों की आत्मा ) जिन्होंने इस मात्रभूमि के लिए अपने प्राण गवाये है तो आज की दुर्दशा देखकर वो मुझसे लिपटकर रोने लगते है और  मै उन्हें अपने सीने से लगाकर चुप कराती हू और अपनी आँखों में आँसू रोके हुये  कहती हूँ की घबराओ मत बेटा सब ठीक हो जायेगा। अभी कल ही मुझे आमतौर  पर शान्त रहने वाला और हमेसा अहिंसा की बात करने वाला  गाँधी मिला, अपने टूटते हुए सपनों के भारत को देखकर काफी गुस्से में था , उसने तो अपने सपनो के भारत का सारा सिधान्त व्  साहित्य  ही जलाकर राख कर डाला,आगे बढ़ी तो मैंने देखा की मेरी आज़ादी के लिए खुले आम खून मांगने वाले  मेरा दुलारे  सुभाष की आँखों में इतनी हिंसा भरी थी की कही उसका वश चलता तो वह आज मेरी अस्मिता की रक्षा के लिए अकेले ही दुनिया से लड़ जाता , कभी कभी तो मेरा भी मन यही कहता है की कही आज मेरे ये बच्चे होते तो मेरी यह हालत देखकर समूचे ब्रम्हांड में उथल पुथल मचा देते। खैर कुछ भी हो .. मैंने उन दोनों को समझाया की बेटा थोडा धैर्य रखो अभी भी मेरे कुछ बच्चे है जो मेरे लिए चिंतित है जिस दिन उनका अनुकूल समय हुआ वो मेरे सभी दुश्मनों का जडमूल से नाश कर देंगे।

प्रिय  मनमोहन कुछ  दिन पहले  तो तुमने  मुझपर बड़ा वज्राघात किया  जब मेरे लिए चितित मेरे कुछ इमानदार बच्चो ने इस भारत भूमि के मुखिया होने के नाते तुमसे हजारों  सवाल पूछा और तुमने सवालो का लाज रखते हुए अपनी खामोसी को बेहतर समझा (हज़ार जवाबों से बेहतर है मेरी खामोसी न जाने कितने सवालों की लाज रखी - मनमोहन  सिंह  ) तुम्हारे इस जवाब  ने तो मुझे झकझोर कर ही रख दिया। क्योकि उस दिन  या तो तुम अपने कर्तब्य से भाग रहे थे या फिर तुम्हारी भी नियत में खोट थी। मेरे हजारो हज़ार सालो  के इतिहास में ऐसा मूक  योद्धा तो मेरी कोख में नहीं हुआ था। मनमोहन मेरी अस्मिता की रक्षा के लिए मेरे बच्चों ने यूनानियों से  लेकर अंग्रेजों तक 2500 साल लगातार लड़ाई लड़ी है अगर कही आज के दिन का जरा सा भी पूर्वानुमान मुझे होता तो मै अपने करोडो  बच्चों को अपने लिए जान की बाजी  न लगाने देती. मुझे क्या पता था की 15 अगस्त 1947 को अंग्रजों की बेड़ियों से आज़ाद होने के बाद मुझे अपने ही बच्चों की बेड़ियों में कैद होना पड़ेगा।

प्रिय मनमोहन इतनी कटुता का सिर्फ एक मतलब है की मेरे सारे  बच्चे सुखी रहे,कही यही कटुता मेरे  गरीब बच्चों ने अपने मन में  रख ली तो मै उस स्थिति में  आपसी संघर्ष की कल्पना करके डर  जाती हूँ ...,मेरे अन्दर एक माँ का ह्रदय है और अभी भी मेरी उम्मीदें तुम पर टिकी है ,मुझे यह पूरा विश्वास है की एक दिन तुम अपनी जिम्मेदारी समझोगे और सारे हालात संभाल लोगे .....................तुम्हारे जवाब की प्रतीक्षा में
                                                                                     
       तुम्हारी भारत माता 
                                             Ajay Singh
                                                09792363733

Monday 10 September 2012

भारत माता को भारत के युवाओ की ओर से समर्पित

                                                                   बांध कर सर पर कफ़न
                                                                   हम सब दीवाने हो गये
                                                          माँ तेरे बच्चे जो थे अब सयाने हो गये

                                                                     थाम ली तलवार अब
                                                                     मैदान वीराने हो गये
                                                                     वो दुश्मनों की हार के
                                                                     किस्से पुराने हो गये
                                                          माँ तेरे बच्चे जो थे अब सयाने हो गये


                                                                 अब न कर तू कुछ फिकर
                                                                  हम सब बवंडर हो गये
                                                                  हम दुश्मनों के सामने
                                                                  भीषण समंदर होगये
                                                                  वो रक्तरंजित जंग को
                                                                   कितने ज़माने हो गये
                                                          माँ तेरे बच्चे जो थे अब सयाने हो गये

                                                                  
                                                                     जीत लेंगे हम जमीं
                                                                     अम्बर हमारे हो गये
                                                           माँ तेरे बच्चे जो थे अब सयाने हो गये

                                                             ajay singh

Friday 23 March 2012

शोरगुल सुनते हुए

शोरगुल सुनते हुए
गजले समझ में आ गयीं
वो खेल कूद की ललक
बढती उम्र ही खा गयीं

और फिर आ ही गए
दहशत भरे वो दिन
बचपन की बातें हो चलीं
बूढी बताये बिन

मौज मस्ती खूब की
सावन के झूले झूलकर
कितना दीवाना खुश हुआ
बूढों की बातें भूलकर

खेला किये सब भूलकर
जेठ की उस धूप में
सब दर्द हो जाते फ़ना
दादी की झूठी फूँक में

अब जिन्दगी बेख़ौफ़ सी
आई है करने को हिसाब
मुझको बताओ आज तक
तुमने पढ़ी कितनी किताब

मै भी तो हू बेख़ौफ़ सा
बस चूर अपने आप में
निकला निडरता को लिए
इस जिन्दगी के ताप में



दोस्तों अब २३ का हो चला हू... और जिन्दगी ने अपने रंग दिखने शुरू कर दिए है. ग़ज़लें समझ में आने लगी तो डर लगा शायद मै बड़ा हो गया. चूंकि अभी अभी बचपना गया है इसलिए यकीन मनो डर तो लग ही रहा है, लेकिन ..मान नहीं सकता क्योकि कुछ भी नहीं है मेरे पास, .. डर से लड़ने को.......... सिवाय हिम्मत के ............................

अजय सिंह बीरपुर बिसेन दर्जीकुआ गोंडा

Thursday 22 March 2012

प्राइमरी की पाठशाला में

प्राइमरी की पाठशाला में
बरगद के पेड़ के नीचे
गुरूजी ने बताया था
गुरु जी ने सिखाया था
ये जो तुम्हारी किताब है
तुम्हारे पुरखों का हिसाब है
इनको पढो
इनकी तरह बनो
यही तुम्हारी परीक्षा है
और
यही हमारी शिक्षा है

अब थोडा बड़ा हो गया हूँ
सालों का पढ़ा हो गया हूँ
कभी खोलता हू कोई किताब
तो दिखता है पुरखों का हिसाब
सोचता हू मै भी कुछ जोड़ दू
देश के दुश्मनों का गुरुर तोड़ दू
सोचता हू मेरी भी एक किताब हो
भविष्य में मेरा भी कुछ हिसाब हो
लोग मुझे भी पाठशाला में पढ़े
लोग मुझे भी भारत का बेटा कहे

क्योकि जिन्दगी के इस दौर में
अब भी मुझे याद है
गुरूजी ने बताया था
गुरु जी ने सिखाया था
प्राइमरी की पाठशाला में
बरगद के पेड़ के नीचे
ये जो तुम्हारी किताब है
तुम्हारे पुरखों का हिसाब है
Ajay singh

Sunday 8 January 2012

वो यादें मेरे बचपन की

वो यादें मेरे बचपन की अब कितनी अच्छी लगती हैं
वो दादी की उड़ती परियां अब कितनी सच्ची लगती हैं
जब धूल से लथपथ थके हुए हम खेल के घर को आते थे
माँ की गोदी में बैठ के जब हम खूब बताशे खाते थे

शाम को बैठ के दादी माँ जब चोर सिपाही कहती थी
मधुशूदन आते जाते थे और चाँद में परियां रहती थी
स्कूल को जाते भैया की जब पहली कॉपी फाड़ी थी
सीने से लगाकर भैया ने तब प्यार से थपकी मारी थी

बहनों ने हाथों में जब मेहंदी खूब रचाई थी
छिपकर भाभी के रंगों से हमने भी भरी कलाई थी
वो पापा के ट्रांजिस्टर के जब तर पुराने तोड़े थे
वो बचपन की दीवाली में जब खूब पटाखे फोड़े थे

जरा सी बात पर आँखे भिगोकर बैठ जाते थे
कहकर मेरा राजा बेटा पापा खूब मानते थे
वो बचपन के मीठे लड्डू जब मम्मी खूब बनती थी
वो बागों के मीठे अमियाँ जब दादी खूब खिलाती थी

वो रिश्तों की कच्ची पक्की बुनियाद पर खेला करते थे
वो बूढों के आदेशों को हम कैसे झेला करते थे
वो नासमझी के सुन्दर दिन कही फिर से लौट चले आते
आ जाती फिर प्यारी दादी और चोर सभी पकडे जाते
ajay singh
9792363733

Saturday 7 January 2012

सत्तावन की तलवारों से

सत्तावन की तलवारों से
मची ग़दर जब भारी थी
औरत बूढ़े बच्चे सब की
मिट जाने की तयारी थी

सबने आहुति दे दी थी
आई अब अपनी बारी थी
गोंडा वाले दीवानों को
माटी जाँ से भी प्यारी थी

घुटनों तक लम्बे हाथ लिए
जब राजा भी लड़ने आये
बच्चों से लेकर बूढों तक
कोई भी घर न रुक पाये

बीस हज़ार दीवानों ने
साथ कसम जो खाई थी
इधर उधर भागे गोरे
उन पर तो सामत आई थी

बांध कफ़न सर पे अपने
यहाँ खून से खेली होली थी
भारत की लाज बचने को
चल पड़ी आज फिर टोली थी

वो फज़त अली की गोली से
अंग्रेज कमिश्नर का मरना
फिर अपनी माटी की खातिर
वो अशरफ का जिन्दा जलना

घर घर जा करके राजा ने
हर मां से बेटे मांगे थे
उन बेटों के रणकौशल से
गोरे डर करके भागे थे

जब लमती में पलटनें सजी
तब राजा कहने आते है
गोंडा वाले हम है सपूत
माटी का मोल चुकाते है

हम उनमे से एक नहीं
जो अपने शीश झुकाते है
हम स्वाभिमान की रक्षा में
मारते है या मार जाते है

ढेमवा की मांद सुरंगों से
उन वीरों के हर अंगों से
आवाजें फिर से उफनायीं
चुप रहने तक लड़ने आई

फिर बरछी तीर कटारों से
उन वीरों की तलवारों से
खून की नदियाँ बाह निकलीं
उन बंदूकों की मारों से

जब गरजी सरयू पर तोपें
डर करके गोरे भाग चले
वीरों की घोर गर्जना से
बेचारे आगे नहीं मिले

आते गोरों की नावों पर
जब तोपों ने गर्मी उगली
जब वीरों की बंदूकों से
बस केवल मौतें ही निकली

वो बेलवा के बाईस हमले
वो लमती के खूनी किस्से
पूछो चर्दा की मिटटी से
वो वीर आज भी है मिलते

अपने में से ही कुछ भाई
गोरों से जाकर न मिलते
तो भारत माता के सपूत
अपनी जगहों से न हिलते

उस ग़दर की भीषण ज्वाला में
जिसने भी शंख बजाये थे
अपनी माटी के खातिर
जिसने भी शीश कटाए थे

आओ उनको हम नमन करें
जीना हमको सिखलाते हैं
वो हरदम जीने की खातिर
अमरों में नाम लिखते हैं

ajay singh
9792363733