Friday 23 March 2012

शोरगुल सुनते हुए

शोरगुल सुनते हुए
गजले समझ में आ गयीं
वो खेल कूद की ललक
बढती उम्र ही खा गयीं

और फिर आ ही गए
दहशत भरे वो दिन
बचपन की बातें हो चलीं
बूढी बताये बिन

मौज मस्ती खूब की
सावन के झूले झूलकर
कितना दीवाना खुश हुआ
बूढों की बातें भूलकर

खेला किये सब भूलकर
जेठ की उस धूप में
सब दर्द हो जाते फ़ना
दादी की झूठी फूँक में

अब जिन्दगी बेख़ौफ़ सी
आई है करने को हिसाब
मुझको बताओ आज तक
तुमने पढ़ी कितनी किताब

मै भी तो हू बेख़ौफ़ सा
बस चूर अपने आप में
निकला निडरता को लिए
इस जिन्दगी के ताप में



दोस्तों अब २३ का हो चला हू... और जिन्दगी ने अपने रंग दिखने शुरू कर दिए है. ग़ज़लें समझ में आने लगी तो डर लगा शायद मै बड़ा हो गया. चूंकि अभी अभी बचपना गया है इसलिए यकीन मनो डर तो लग ही रहा है, लेकिन ..मान नहीं सकता क्योकि कुछ भी नहीं है मेरे पास, .. डर से लड़ने को.......... सिवाय हिम्मत के ............................

अजय सिंह बीरपुर बिसेन दर्जीकुआ गोंडा

Thursday 22 March 2012

प्राइमरी की पाठशाला में

प्राइमरी की पाठशाला में
बरगद के पेड़ के नीचे
गुरूजी ने बताया था
गुरु जी ने सिखाया था
ये जो तुम्हारी किताब है
तुम्हारे पुरखों का हिसाब है
इनको पढो
इनकी तरह बनो
यही तुम्हारी परीक्षा है
और
यही हमारी शिक्षा है

अब थोडा बड़ा हो गया हूँ
सालों का पढ़ा हो गया हूँ
कभी खोलता हू कोई किताब
तो दिखता है पुरखों का हिसाब
सोचता हू मै भी कुछ जोड़ दू
देश के दुश्मनों का गुरुर तोड़ दू
सोचता हू मेरी भी एक किताब हो
भविष्य में मेरा भी कुछ हिसाब हो
लोग मुझे भी पाठशाला में पढ़े
लोग मुझे भी भारत का बेटा कहे

क्योकि जिन्दगी के इस दौर में
अब भी मुझे याद है
गुरूजी ने बताया था
गुरु जी ने सिखाया था
प्राइमरी की पाठशाला में
बरगद के पेड़ के नीचे
ये जो तुम्हारी किताब है
तुम्हारे पुरखों का हिसाब है
Ajay singh